Wednesday, 24 December 2014

मनाली मत जइयो - अटल बिहारी वाजपेयी


यूँ ही पढ़ते पढ़ते अटल जी एक रुमानियत भरी कविता पढ़ने को मिली , अटल जी अच्छे वक्ता तो है साथ साथ एक अच्छे रुमानियत भरे कवि भी हैं आप भी आनंद लीजिये  इस मनोहारी कविता का ..

मनाली मत जइयो, गोरी 
राजा के राज में।                                                   
                      

जइयो तो जइयो, 
उड़िके मत जइयो, 
अधर में लटकी हौ, 
वायुदूत के जहाज़ में। 

जइयो तो जइयो, 
सन्देसा न पइयो, 
टेलिफोन बिगड़े हैं, 
मिर्धा महाराज में। 

जइयो तो जइयो, 
मशाल ले के जइयो, 
बिजुरी भइ बैरिन 
अंधेरिया रात में। 

जइयो तो जइयो, 
त्रिशूल बांध जइयो, 
मिलेंगे ख़ालिस्तानी, 
राजीव के राज में। 

मनाली तो जइहो। 
सुरग सुख पइहों। 
दुख नीको लागे, मोहे 
राजा के राज में।

Tuesday, 23 December 2014

धर्म का मर्म ( Religion for Live, not For Show off)




एक बार ऋषि वाल्मीकि के पास कुछ लोग आये और बोले ऋषिवर हमने हर देवता की मूर्ति बना ली है लेकिन धर्म  की मूर्ति कैसे बनायें ! कुछ सूझता ही नहीं की उसकी नासिका (नाक ) , हनु (ठोड़ी) , ललाट ( माथा ) , इत्यादि कैसे है ! कृपया मार्ग दर्शन करें हमें धर्म की पूजा करनी हैं ! ऋषि वाल्मीकि हँसे और वोले धर्म का कोई आकर नहीं है ये तो चैतन्य हैं जीवन को जीने का माध्यम मात्र है , धर्म को जी सकते है और उसकी पूजा उसे जी कर ही हो सकती है धर्म कोई किताव या मूर्ति में नहीं होता 

ये आपके स्वभाव में होता है वे सभी लोग खुश होकर बापिस लौटे  गए और जिनकी मूर्ति उन्होंने बनायीं थी उन देवताओं के आदर्शो को उन्होंने जिया ना कि सिर्फ आडंबर ( दिखावा ) किया और इसी प्रकार एक बार कौरवों और पांडवों के गुरु ने उन्हें दो पक्ति याद करने को दी , की "सत्य ही जीवन है " और “धर्म का पालन ही सत्य है " ये दोनों वाक्य सब भाईओं को याद हो गए लेकिन युधिष्ठिर को याद नहीं हुए ! उनके गुरु ने पुछा युधिष्ठिर तुम सब से बुद्दिमान हो,किन्तु तुम्हे ये दो वाक्य कैसे याद नहीं हुए? युधिष्ठिर वोले गुरुदेव ये दोनों वाक्य भला इतनी शीघ्र कैसे याद हो सकते हैं ये वाक्य तो जीवन को जीने से और इनका पालन करने से ही याद होंगे और गुरु देव ने उन्हें गले लगा लिया और वो धर्मराज हुए !अत धर्म और धर्मांतरण के नाम लड़ना किसी धर्म का पालन नहीं और दरअसल धर्म का कोई नामकरण ही नहीं हैं ये तो चैतन्य हैमित्रो धर्म के मर्म को समझो और धर्मांतरण या धर्म के पालन और उसके तत्व के ज्ञान में विभेद करना सीखो , ध्यान रखो सत्य और धर्म चैतन्य है ,स्वभाव है, जीने का नाम है , कोई दिखावा नहीं ........

...निशांत यादव
                                                                                      


                                                                                          



Wednesday, 3 December 2014

आत्मा है खाली हाथ (A Soul with Empty Hand ) .....



 परमार्थ का स्वार्थ से मेल क्या है !

सत्य का असत्य से भला नाता कैसा !


इन सब तुलनाओं के बीच !


एक सत्य है जीवन और मृत्यु का होना !

जीवन का मृत्यु से और मृत्यु का जीवन से राग अलग है !


क्रोध , द्वेष , हिंसा और मोह माया !


प्रेम , त्याग बैराग्य और तपस्या !


यही इस जीवन का सच है !


मृत्यु क्या है ?


सिर्फ निस्वार्थ चले जाने खाली हाथ ?


हा यही है सच है मृत्यु बाद !


आत्मा है खाली हाथ .............

           

                                                                                            
                                                                                   निशान्त यादव